छत्तीसगढ़ में कितने बाघ? अब तो 18 का भी दावा नहीं कर रहा वन विभाग


छत्तीसगढ़ में बाघों की तेजी से घटती संख्या ने पूरे वन महकमे को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। 2014 में 46 से घटकर 2019 में 19 बाघ होने का दावा किया गया था। 24 नवंबर 2019 को हुई छग राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक के चार बड़े फैसले, लेकिन सरकार से अनुमोदन नहीं हुआ जारी।




 


 


रायपुर. छत्तीसगढ़ में 2014 में हुई बाघों की गणना में 46 व 2019 की गणना के मुताबिक प्रदेश में 19 बाघ ही बचे हैं। हालांकि प्रदेश सरकार ने केंद्र के आंकड़ों को गलत बताया और कहा कि हम फिर से गणना करवाएंगे। इस बीच बाघों को संरक्षित करने, इनकी संख्या बढ़ाने और तस्करों से बचाने के लिए कई अहम बैठकें हुई और बड़े-बड़े फैसले लिए गए। मगर इनमें से एक भी फैसला कागजों से जमीन पर नहीं आ पाया है। इस दौरान तस्करों ने दो और बाघ मार दिए। अब तो विभाग भी नहीं कह पा रहा कि बाघों की संख्या 19 है या 18 या 17 ही रह गई है। वन अफसर दलील दे रहे हैं कि केंद्र रेडियो कॉलर की मंजूरी नहीं दे रहा है, यही एक सिस्टम है जिसके जरिए सही गणना संभव है।


दूसरी तरफ राज्य सरकार भी बाघों को लेकर संवेदनशील नहीं दिखाई दे रही। 24 नवंबर 2019 को सीएम हाऊस में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्ष में राज्य वन्य जीव संरक्षण बोर्ड की बैठक हुई थी। जिसमें बाघों की संख्या को बढ़ाने के लिए चार अहम फैसले लिए गए थे। मगर अब तक उन पर अनुमोदन ही नहीं आया है।


24 नवंबर को सीएम की अध्यक्षता में हुई वन्य जीव संरक्षण बोर्ड की बैठक में लिए गए निर्णय
प्रदेश में बाघों की संख्या को बढ़ाने के लिए राज्य सरकार राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की मदद लेगी।
मध्यप्रदेश से चार मादा और दो नर बाघ की रिकवरी योजना के तहत छत्तीसगढ़ लाया जाएगा।
उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में एक मादा बाघ है, नर एक भी नहीं। यही कारण है कि अचानकमार से एक बाघ उदंती में शिफ्ट किया जाएगा।
बाघों की संख्या में इजाफा कैसे हो,इसे लेकर भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की मदद ली जाएगी। प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है।
बाघों को पहली बार रेडियो कॉलर लगाया जाएगा, ताकि इनके हर एक मूवमेंट पर नजर रखी जा सके। राज्य ने केंद्र से रेडियो कॉलर लगाने की अनुमति मांगीं है।


क्यों जरूरी है बाघ
बाघ जंगल के ईको सिस्टम को बनाए रखता है।
बाघ के जंगल में होने से जंगल, लकड़ी तस्करों से सुरक्षित रहते हैं।
बाघ के होने से जंगलों में शिकारियों को भय होते है, वन्य जीव सुरक्षित रहते हैं।


बाघ है पर्यटकों की पहली पसंद
बाघ पर्यटन के लिहाज से बेहद अहम माना जाता है। पेच राष्ट्रीय उद्यान, कान्हा राष्ट्रीय उद्यान और बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की भारी आवाजाही रहती है। यहां पर्यटक बाघों को देखने ही जाते हैं। इस लिहाज से प्रदेश के किसी भी अभ्यारण्य को विकसित नहीं किया गया। पर्यटकों के आने से न सिर्फ राज्य को पहचान मिलती है, साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है। अपार संभावना के बावजूद छत्तीसगढ़ पीछे है।


माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में भी बाघ
बस्तर और सरगुजा संभाग के जंगलों में कभी वन विभाग दाखिल ही नहीं हुआ, क्योंकि ये माओवाद प्रभावित जंगल हैं। अगर गणना हो तो यहां बड़ी संख्या में बाघ मिल सकते हैं। बीते कुछ सालों में सरगुजा के जंगलों में बाघों का शिकार होना पाया गया है।


शुरू नहीं हो पाया बाघों की गणना का चौथा चरण
केंद्र सरकार के निर्देशानुसार राज्य में बाघों की गणना का चौथा चरण (फेज फोर) 15 अक्टूबर से शुरू हो जाना था,जो अब तक हुआ ही नहीं है। गौरतलब है कि ठंड और गर्मी में ही बाघ की गणना मुमकिन होती है। ठंड के तीन महीने तो बगैर किसी गणना के बीत चुके हैं। केंद्र को 15 मई तक रिपोर्ट भेजी जानी है। अतुल शुक्ला, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, (वन्यजीव), वन विभाग ने बताया कि हमारे प्रदेश में कितने बाघ हैं, इसका दावा तब तक नहीं किया जा सकता है, जब तक की रेडियो कॉलरिंग नहीं हो जाती। इसके लिए केंद्र सरकार की अनुमति का इंतजार है।